हिस्ट्री ऑफ़ रक्षा बंधन इन हिंदी

भारत वर्ष में हर साल अनेकों त्यौहार मनाए जातें हैं, उन्ही में से एक त्यौहार है- रक्षा बंधन| इस त्यौहार की मान्यता हिन्दू समाज में काफी उल्लेखनीय है| रक्षा बंधन का मतलब है- ऐसा बंधन (रिश्ता) जो आपकी रक्षा करे| वैसे तो इस त्यौहार को भाई-बहन के प्रेम का उदाहरण माना जाता है किंतु पौराणिक कथाओं के अनुसार- रक्षा बंधन सिर्फ भाई-बेहेन का त्यौहार नहीं है| राखी से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएँ, जो इस त्यौहार के असली स्वरूप का उदाहरण हैं, निम्न हैं| तो आइये, जानते हैं राखी की हिस्ट्री हिंदी में|

हिस्ट्री ऑफ़ रक्षा बंधन इन हिंदी

सिकंदर अवं पुरु की कहानी

विश्व इतिहास में सिकंदर का काफी नाम हैं| कहा जाता हैं की पूरा विश्व फ़तह करने के बाद जब सिकंदर हिंदुस्तान पंहुचा, तब उसका सामना भारतीय राजा पुरु से हुआ| पुरु बहुत बलशाली और वीर राजा थे, अवं उन्होंने सिकंदर को जंग के मैदान में धूल भी चटाई थी| सिकंदर की पत्नी को जब अपने पति की हार के बारे में पता चला तब वह काफी डर गई| उसी पश्चात् उन्हें, भारतीय त्यौहार रक्षा बंधन अवं उसकी मान्यता के बारे में भी ज्ञात हुआ| तब सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के प्राण बचाने हेतु, राजा पुरु के लिए एक राखी भेजी| राजा पुरु राखी पाकर थोड़ा चकित थे किंतु राखी का सम्मान करते हुए उन्होंने युद्ध के दौरान सिकंदर पर वार करने से अच्छा उसके सामने हार मानना समझा| इसी कारण-वश युद्ध में सिकंदर से सामना होने पर, राजा पुरु ने सिकंदर पर हमला न कर, उसके बंदी बन गए| सिकंदर को जब उसकी पत्नी द्वारा पुरु की कलाई पर बंधी राखी का पता चला, तब सिकंदर ने भी राजा पुरु को इज़्ज़त के साथ उनका राज्य वापस कर दिया|

तो यह थी रक्षा बंधन हिस्ट्री इन हिंदी एक पौराणिक कहानी के स्वरूप में| आएये आगे बढ़ते हैं जानते बाकी कहानिओ के बारे में|

सिकंदर अवं पुरु की कहानी

श्री कृष्णा अवं द्रौपदी की कहानी

एक बहुत ही सुन्दर कथा जो की भाई-बहन के रिश्ते को और भी ख़ूबसूरती बनती हैं, उसका उल्लेख महाभारत में हैं| इस कथा को सुन्दर इसलिए कहा जाता हैं क्यूकि यह कथा हमे बताती हैं की रक्षा बंधन का त्यौहार बनाने के लिए सगा होना जरूरी नहीं अर्थात रक्षा बंधन मुँह-बोले भाई के साथ भी मनाया जा सकता हैं| कथा के अनुसार, जब युधिष्ठर इंद्रप्रस्थ में राजयुस यज्ञ कर रहे थे, तब उस सभा में श्री कृष्ण अवं शिशु पाल भी मौजूद थे| भरी सभा में शिशु पाल, श्री कृष्ण का अपमान करता हैं जिसके अनुरूप श्री कृष्ण उसका वध अपने सुदर्शन चक्र से कर देते हैं| इस पश्चात् श्री कृष्ण की एक ऊँगली उसी चक्र से थोड़ी सी कट जाती हैं और उससे रक्त बहने लगता हैं| यह देखकर, सभा में मौजूद द्रौपदी दौड़ते हुए श्री कृष्ण के पास जाती हैं और अपने साड़ी के पल्लू को चीरकर, श्री कृष्ण की कट्टी हुई ऊँगली में बांध देती हैं| जिस पर श्री कृष्ण, हर्षविभोर होकर द्रौपदी को वचन देते हैं की वो हर एक धागे का ऋण द्रौपदी को चुकाएंगे| इसलिए जब कौरव द्रौपदी का चीर हरण करते हैं, तब श्री कृष्ण द्रौपदी के चीर (साड़ी) को बढ़ाकर, द्रौपदी की लाज बचाते हैं| यह भी कहा जाता हैं की जिस दिन द्रौपदी कृष्ण की ऊँगली में चीर बांधती हैं, वह श्रवण मॉस की पूर्णिमा का दिन था|

तो यह थी एक और रक्षा बंधन स्टोरी इन हिंदी आपके लिए|

श्री कृष्णा अवं द्रौपदी की कहानी

राजा बली, भगवान विष्णु, अवं माँ लक्ष्मी

राजा बली एक बहुत दान-वीर राजा थे अवं वह भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त भी थे| एक बार राजा बली ने अपने महल में यज्ञ का आयोजन किया, इसी दौरान भगवान विष्णु ने राजा बली की परीक्षा लेने का निर्णय लिया| अर्थात भगवान विष्णु ने वामनावतार लिया और यज्ञ में पहुँचकर राजा बली से तीन पग भूमि मांगी| परन्तु विष्णु जी ने दो ही पग में पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया, जिसपर राजा बली को एहसास हुआ की यह वामन विष्णु जी ही हैं जो उनकी परीक्षा ले रहे हैं| राजा बली एक राजा थे और राजा के मुँह से निकले वचन कभी वापस नहीं जातें, तब राजा बली ने तरकीब लगाई और विष्णु जी का पैर, तीसरे पग की लिए अपने सर पर रखवा लिया| फिर उन्होंने विष्णु जी से अनुरोध किया की अब तो राजा बली का सब कुछ चला ही गया हैं तो विष्णु जी उनके साथ चलकर पाताल में रहे| विष्णु जी ने अपने परम भक्त की बात मानी और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए| उधर माँ लक्ष्मी चिंतित हो उठी अवं उन्होंने अपने वर को वापस लाने के लिए एक लीला रची और वह एक गरीब महिला का रूप धर कर राजा बली के महल पहुंच गई| वहाँ पहुँचकर उन्होंने राजा बली के राखी बाँधी, जिसके उतर में राजा बली ने कहा की मेरे पास आपको देने के लिए कोई शगुन नहीं हैं| तब देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में आई और कहा की आपके पास मेरा वर हैं, और मुझे शगुन के तौर पर वही वर चाहिए हैं| इस पर राजा बली ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ जाने दिया| परन्तु जातें समय भगवान विष्णु ने राजा बली को वरदान दिया की प्रति वर्ष विष्णु जी चार माह के लिए पाताल में ही निवास करेंगे| और तब से यह चार मॉस चातुर्मास के रूप में जाना जाता हैं जो की देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठाउनी एकादशी तक होते हैं|

राजा बली, भगवान विष्णु, अवं माँ लक्ष्मी

तो यह थी स्टोरी बिहाइंड रक्षा बंधन इन हिंदी, जहाँ हर कहानी का महत्त्व अलग हैं| ऐसी ही और भी बहुत सी कहानियाँ हैं जो आप हमारे पेज पर पढ़ सकते हैं| इसी के साथ हम विदा लेते हैं और आशा करते हैं की आप सभी ने ऑनलाइन राखी गिफ्ट्स फॉर भैया भाभी की शोपिंग भी शुरू कर दी होगी|तो मिलते हम आपसे, हमारे अगले ब्लॉग के साथ तब तक लिए- शुभ रक्षा बंधन|